सनातन धर्म में यूं तो हर व्रत का अपना महत्व है लेकिन एकादशी का विशेष स्थान है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है इसलिए एकादशी को हरि वासर या हरि का दिन भी कहा जाता है। हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में दो एकादशी पड़ती हैं और इस व्रत को करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं व व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में एकादशी व्रत को करने का विशेष नियम बताए गए हैं। कहा जाता है कि इन नियमों का पालन सही से नहीं किया जाए तो व्रत का कोई फल नहीं मिलता है। एकादशी के दिन बताया जाता है कि तामसिक भोजन से परहेज रखना चाहिए और चावल नहीं खाना चाहिए। कहा जाता है कि इसे खाने से मन में अशुद्धता आती है।
इन सब से हटकर अगर धार्मिक मान्यता पर जाएँ तो कहा
जाता है कि माँ शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने धरती पर ही अपना
शरीर त्याग दिया था और जिस दिन उन्होंने शरीर त्याग किया उस दिन एकदशी था और जब महर्षि मेधा ने अपना शरीर त्याग किया तो वह चावल
और जौ के रूप में धरती पर जन्म लिये। इसी कारण चावल और जौ को जीव के रूप में माना
जाता है। एकादशी के दिन इनका सेवन करना यानी महर्षि मेधा के खून और रक्त का सेवन
करने के बराबर है।
एकादशी के दिन चावल न खाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी छिपा है। इसके अनुसार, चावल में अधिक मात्रा में पानी पाया जाता है। ऐसे में पानी में चंद्रमा का प्रभाव अधिक होता है और चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। जब व्यक्ति एकादशी के दिन चावल का सेवन करता है, तो उसके शरीर में अधिक मात्रा में पानी हो जाता है। ऐसे में उसका मन चंचल और विचलित होने लगता है। ऐसे में उसे अपना व्रत पूर्ण करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
एकादशी व्रत करने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को दशमी
के दिन से कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना पड़ेगा। इस दिन मांस, कांदा (प्याज), मसूर की दाल आदि का निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना
चाहिए। रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना
चाहिए।
एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन व आम के पत्ते लेकर चबा लें और उँगली से कंठ
सुथरा कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है। अत: स्वयं गिरा
हुआ पत्ता लेकर सेवन करें। यदि यह सम्भव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें।
फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें व पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण
करें। प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि 'आज मैं चोर, पाखण्डी और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूँगा और
न ही किसी का मन दुखाऊँगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूँगा।'
'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस द्वादश मन्त्र का जाप करें। राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्रनाम को कण्ठ का भूषण
बनाएँ। भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज
आपके हाथ है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना।
इस दिन यथाशक्ति दान करना चाहिए। किन्तु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें। दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है। वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए। त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें।
फलाहारी को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, कुलफा का साग इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। केला, आम, दाख (अंगूर), बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें। प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणा देना चाहिए। क्रोध नहीं करते हुए मधुर वचन बोलने चाहिए।
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